किसी भी समाज, संस्कृति और साहित्य की सफलता उसके गौरवशाली अतीत पर अवलम्बित है। वह अपनी व्यापक परिधि में अपने स्वर्णिम अतीत की कटु-मधुर स्मृतियों को संजोकर ही प्रगति के शीर्ष पर आरूढ़ होती है। श्री भवानी निकेतन शिक्षण संस्था का भी अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा हैं। सन् 1942 में स्वर्गीय महाराजाधिराज लेफ्टिनेंट जनरल सर सवाई मानसिंह जी बहादुर द्वितीय जी.सी.आई.ई. द्वारा राजपूत समाज के शैक्षणिक उन्नयन के उद्देष्य से शिक्षा की ज्योति को प्रज्जवलित किया गया। वह एक ऐसे युगदृष्टा थे, जिन्होनें युवाओं के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए, हमें उद्देश्यपूर्ण ढंग से जीने की रोशनी दी, राह बताई। समाज को सही दिशा प्रदान करने और बच्चों के चारित्रिक एवं मानसिक विकास के मद्देनजर 501 बीघा 1बिस्वा भूमि राजपूत समाज के शैक्षणिक उन्नयन के लिए प्रदान की। महाराजाधिराज द्वारा प्रज्जवलित शिक्षा की यह अलख ज्योति वर्तमान में अपनी सम्पूर्ण प्रखरता के साथ चारों ओर विकीर्णित है।
फरवरी 1945 को स्व0 महाराजा श्री सवाई मानसिंहजी द्वितीय के द्वारा बंसत पंचमी के दिन श्री भवानी निकेतन की स्थापना हुई। सन् 1945 से जनवरी, 1988 के बीच यह संस्थान अनेक उतार-चढ़वा के दौर से गुजरा। सन् 1963, 1975 व 1982 में इस संस्था की भूमि पर राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहण की कार्यवाही की गई और अनेक प्रकार के हस्तक्षेप भी किया गया। इसी कारण इस शिक्षण संस्था के संचालकों का ध्यान इस भूमि की सुरक्षा की तरफ केन्दित रहा। पूर्व मुख्यमत्री और उपराष्ट्रपति स्व0 श्री भैरोसिहं जी शेखावत ने सन् 1984 में इस संस्था को सरकारी कार्यवाहियों से मुक्त कराया। तब से लेकर वर्तमान तक यह संस्था अपनी चरम उपलब्धियों को कायम किये हुये हैं।
इस संस्थान की एक अहम् कड़ी के रूप में सन् 1990-91 में श्री भवानी निकेतन महिला महाविद्यालय की स्थापना हुई, तत्कालीन शिक्षा मंत्री श्रीमती सुमित्रस सिंह के कर-कमलों से यह महाविद्यालय कला एंव वाणिज्य संकाय के साथ प्रारम्भ हुआ। महज 35 छात्राओं से ढहर का बालाजी रेलवे स्टेशन के सामने स्थित कच्चे छप्परों और टीन के टपरों में आरम्भ हुआ यह महाविद्यालय अपनी स्थापना के 25 बसंत पूरे कर चुका है और एक स्वर्णिम उपलब्धि के रूप में हमारे समक्ष विराजमान है। वर्तमान में यहॉ 4000 से भी अधिक छात्राएॅ स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर कला, वाणिज्य, विज्ञान और बी.एस.सी. गृह विज्ञान संकाय में अध्ययनरत है। स्नातकोत्तर स्तर पर राजनीति विज्ञान, भूगोल, लोक-प्रशासन, अंग्रेजी साहित्य, संस्कृत साहित्य एवं मनोविज्ञान विषय में अध्यापन जारी है।
महाविद्यालय में विज्ञान संकाय का शुभारम्भ सत्र 2006-07 से एवं गृहविज्ञान संकाय सत्र 2008-09 से आरम्भ किया गया है। महाविद्यालय का औसत परिणाम 95 प्रतिशत के लगभग रहता है। महाविद्यालय में छात्राओं के सर्वांगीण विकास पर पूर्ण ध्यान दिया जाता है। छात्राओं के अनुशासन की दृष्टि से भी अपनी अलग पहचान बनाई है। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए महाविद्यालय में छात्रा परामर्श केन्द्र की स्थापना की गई है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से 'आँफिस मैनेजमेंट एण्ड सेक्रेटरियल प्रेक्टिस' के साथ रेमेडियल कोर्स की तैयारी छात्राओं को करवायी जा रही है। आज महाविद्यालय का अपने विशाल और भव्य भवन, सुन्दर, सुसज्जित प्रयोगशालाओं, पुस्तकालय और खेल मैदान से परिपूर्ण है। यहाँ के शांत, स्वच्छ, प्रदूषण मुक्त एवं रम्यक प्राकृतिक वातावरण में बालिकाओं को शिक्षा प्रदान की जाती है। गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर प्रकृति को शिक्षा का आधार मानते हुए कहते हैं कि ''शिक्षण संस्थान प्रकृति के जीवन्त वातावरण में अवस्थित होना चाहिये। समग्र शिक्षा प्राकृतिक वातावरण में दी जानी चाहिए, तभी बालक का प्रकृति एवं वातावरण से एक सम्बन्ध एवं सामंजस्य स्थापित होता है। सच्ची शिक्षा वही है जो मानव को सक्षम कर दे कि वह अपने पूरे अस्तित्व के साथ वातावरण से एक रूप हो सके।'' उनकी दृष्टि में बच्चो के लिए प्रकृति सबसे उत्तम पुस्तक एवं श्रेष्ठ शिक्षक है। सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् एवं आनन्द की सीमा प्रकृति के सामीप्य एवं मैत्री से सीखी जा सकती है। इसी भाव को आत्मसात् करते हुए महाविद्यालय परिसर में प्रतिवर्ष मानसून के आगमन पर वृक्षारोपण कार्यक्रम रखा जाता है, ताकि छात्राओं में प्रकृति प्रेम उत्पन्न हो सके।
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